Wednesday, July 18, 2018




माना कि दूरियाँ कुछ बढ़ सी गई हैं ,

  तेरे हिससे का वक़्त आज भी तनहा गुज़रता,







पत्थर सा एह्साह

मन  क्यूँ  इतना  उलझा  ए  ज़िन्दगी ,
 
    पत्थर  सा  क्यूँ  एहसास है

बात   तो  थी  चंद  लकीरों  की

     फिर  एहसास    इतना  क्यूँ   पास  है 

Wednesday, January 17, 2018

काश ..




        सब कितना बदला हुआ होता ,

                 काश उस वक़्त अगर कुछ और हुआ होता

सवाल .....





         थोड़ा  सा था वो फासला,
                               आज बड़ा सवाल,
         वो झुकी सी आँखें ,
                         और आज बड़ा सवाल 

        कितना खाली  था ,
                  न वक़्त के सवाल न अफसानों का मंज़र
        आज एक चेहरा,
                   और हज़ार सवाल 

Saturday, November 18, 2017

फुरसत



फुरसत से मेरी ज़्ज़बात पढ़ लेना , ए ज़िन्दगी 

   आज फिर मैंने ज़्ज़बात ही भेजा है 

Monday, November 21, 2016

कागज़ के अल्फ़ाज़





        अब वो ममता भी नहीं न वो दौर रही ,
                   सुकून  है उन कागज़ के अलफ़ाज़ से ,
                                      चीख भी लो और आवाज़ नहीं



Friday, September 30, 2016

दास्ताँ लकीरों की ....

मंज़र पता नहीं , कारवाँ चलती रही
    लम्हें गुजरतें रहें , पर दास्तां कहीं नहीं

फलसफा कुछ ऐसा ,
     तेरी आहट और कुछ हवा का झौका ,
असर कुछ ऐसा उन निगाहों की ,
   कारवाँ थमी , पर दास्ताँ फिरभी नहीं

वो निगाहें ; पर जाने कहाँ मंज़र ,
  वो लब्ज़ , वो मुस्कराहटें ; पर जाने कहाँ मंज़र
लम्हें तो गुज़रते  पर लम्हों का फ़कीर
  दास्ताँ तो बस हाथों की लकीर।।।