Sunday, December 20, 2009

यादों की बारात

माली बन बैठा एक गुलशन का ,
नित दिन सींचा करता इस गुलशन को,
तुम बनके के आये एक कलि,
तन में जागा एक उमंग,
मन भी हुआ अति प्रसन्न

मन की इस बगिया में खिली हर तरफ कलि,
चहु ओर थी ख़ुशी ही ख़ुशी,
मीठी थी तेरी वो वाणी ,
दिल जिसे चाहे सुनने को सदेव,
तुम भी खुश थे मेरे संग,
मैं भी खुश तेरे संग,

हवा का वो एक झोंका,
समय ने दिया हमें धोका,
छोड़ गए तुम मेरा साथ,
काट रहा समय की धार,

खोज रहा मन तुम्हें चहु ओर,
मिल जाओ तो पकड़ लूं जोर ,
मंदिर देखा  मस्जिद देखा
नहीं नजर आये तुम किसी ओर,
बस पाया मन में अति शोर,

फिरता हूँ हर दिशा लेकर मन में शोर,
कहाँ जाऊं  किसे बताऊँ ,
चाहूँ की मिटा दूं वो यादें,
चहुँ की भूल जाऊं वो बातें,
मुझ में इतनी हिम्मत नहीं ,
मुझ में इतनी शक्ति नहीं ,
कैसे मिटा दूं वो सारी यादें,
कैसे भूलूं वो सारी बातें ,

तुम तो हो मेरे मन का दर्पण,
कभी नज़र आ जाओ तो,
खुशियाँ  फैलाती हो इस आँगन ,
लेकर तेरी यादों की सौगात,
वो सारी बातों की बारात,
तुम हो सिर्फ मेरी यादों की बारात........

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