Wednesday, July 18, 2018
माना कि दूरियाँ कुछ बढ़ सी गई हैं ,
तेरे हिससे का वक़्त आज भी तनहा गुज़रता,
पत्थर सा एह्साह
मन क्यूँ इतना उलझा ए ज़िन्दगी ,
पत्थर सा क्यूँ एहसास है
बात तो थी चंद लकीरों की
फिर एहसास इतना क्यूँ पास है
Wednesday, January 17, 2018
काश ..
सब कितना बदला हुआ होता ,
काश उस वक़्त अगर कुछ और हुआ होता
सवाल .....
थोड़ा सा था वो फासला,
आज बड़ा सवाल,
वो झुकी सी आँखें ,
और आज बड़ा सवाल
कितना खाली था ,
न वक़्त के सवाल न अफसानों का मंज़र
आज एक चेहरा,
और हज़ार सवाल
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